रविवार, 3 मई 2020

कविता- भ्रम






भ्रम 

 समय के हर काल-अकाल में,...
छल त्रिशूल, विश्वास ढ़ाल में।।।


रग-रग कपट, बुद्धि षडयंत्र साझी,..
मैं बैठा हूँ, कल युग की खाल में।।।


त्राही समाधि बनाये बैठी है,...
पाप बुन रहा हूं माया जाल में।।।


मुझे अभिमान कि मेरा अन्त नही,..
युग समां चुके,समय की चाल में।।।


-शहनाज़ खान

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