शनिवार, 30 मई 2020

कविता- उम्मीद का परिंदा



"उम्मीद का परिंदा"

ज़िंदगी के आसमान में,
उम्मीद का परिंदा उड़ने दो..

पंखो को खोलो,
हौसलों की उड़ान भरने दो...

चुगने दो जीत का दाना,
चहचहो में मिसाल रहने दो...

क्यों कैद काटे कोई,
बंदिशों के पिंजरे में..
बैठा है मन में छुप कर जो,
उस उम्मीद के परींदे को,
हौसलों को उड़ान भरने दो...

-शहनाज़ ख़ान


शनिवार, 16 मई 2020

हमसफ़र

 हमसफ़र



मोहब्बत की उम्र,
मेरे नसीब से बड़ कर मिली मुझे...

लेकिन...

मेरे हमसफर के साथ जीने के लिए,
बस मेरी ही उम्र कम पड़ गयी...

-शहनाज़ ख़ान

शुक्रवार, 8 मई 2020

कहानी- बचपन के साथी


बचपन के साथी


       मैं आज अपनी छत पर बहोत वक़्त के बाद आ गया था।
     बिजली नहीं थी, और गर्मी से बुरा हाल हुआ जा रहा था। बहोत देर इंतज़ार के बाद सोचा शायद छत पर हवा चल रही हो, तो अपना मोबाइल और एक पानी की बोत्तल ले कर आ गया।

        ऊपर छत पर भी कोई खास हवा नहीं थी, लेकिन कमरे की घुटन से बेहतर थी।
      बैठते ही मैंने अपना मोबाइल ऑन करके उस पर मेसेज और नोटिफिकेशन देखी। फिर सोचा ....

"आज कोई मूवी देखता हूँ।...."

     थोड़ी देर बाद महसूस हुआ कि मुझे प्यास लगी है। मैंने बोत्तल खोल कर पानी पीना शुरू किया ही था कि मेरी नज़र आसमान पर गयी।

    " एक टूटता तारा दिखाई दिया.."  

    मैं ठहर गया, एक पल में याद आया, कोई विश मांग लूँ, लेकिन फिर तभी याद आया.....

   "वो तो बचपन की बात थी।... मैं अब भी ऐसे कैसे सोच रहा हूँ?.."

     देखते ही देखते मैं सोचो में खो गया।  मेरी जब भी अब कभी सितारों पर नज़र जाती है, तो मुझे हैरत होती है। आज पूछ ही लिया खुद से...

    "क्या मैं इतना मशरूफ हूँ कि दिनों, महीनों और सालों इन सितारों को देखना ही भूल जाता हूँ?.." 

     फिर यहाँ वहाँ देखा, याद करने की कोशिश कर रहा था कि वो पहले वाले सितारे आज भी यहीं है क्या?..
     एक जो बड़ा सितारा था, हाँ ये भी यहीं है।।

     ओहह.... आज इन सितारों से मिल कर ऐसा लग रहा है, जैसे खोये हुए बचपन के साथी मिल गए हो।

      टीम-टीम करके चमकते सितारे, जैसे आज मुझसे मिल कर मुस्कुरा रहें हैं। मैं बहोत देर आसमान को मुस्कुरा कर देखता रहा और जाने कब सो गया।

      सुबह जब मेरी आँख खुली तो सारे सितारे, थक कर अपने घर जा चुके थे।।
      अब जाने कब मिलना हो, कब याद आये, कब भागती ज़िन्दगी की रेस वक़्त दे और मैं तुमसे मिलने आऊँ?...



- शहनाज़ ख़ान

रविवार, 3 मई 2020

कविता- भ्रम






भ्रम 

 समय के हर काल-अकाल में,...
छल त्रिशूल, विश्वास ढ़ाल में।।।


रग-रग कपट, बुद्धि षडयंत्र साझी,..
मैं बैठा हूँ, कल युग की खाल में।।।


त्राही समाधि बनाये बैठी है,...
पाप बुन रहा हूं माया जाल में।।।


मुझे अभिमान कि मेरा अन्त नही,..
युग समां चुके,समय की चाल में।।।


-शहनाज़ खान

शुक्रवार, 1 मई 2020

मेरा परिचय



हैलो दोस्तों,
                 मेरा नाम शहनाज़ है और आज से मैं अपने ब्लॉगर पेज की शुरुआत करने जा रही हूँ।
मुझे कहानियां और कविताऐं लिखना पसन्द हैं।।

     दुनिया में हर लेखक अपने अनुभवों और विचारों को किसी न किसी माध्यम से पाठकों के सामने रखता है। लेखक अपने मन की भावनाओं को लिख कर, बोल कर, गीत-संगीत से, नाटक क्रम, कविताओं या किसी अन्य प्रकार से अपने पाठकों और प्रसंशकों तक पंहुचाते हैं।।

मैं भी आज यहाँ अपनी लेखनी को आरम्भ करने जा रही हूँ, उम्मीद है आपको मेरी लिखी कविताएँ और कहानियां पसन्द आएँगी।।

आपको यह कहानियां और कविताएँ कैसी लगी, कमेन्ट बॉक्स में ज़रूर बतायें।।।


 सहादर- शहनाज़ ख़ान

                                                     धन्यवाद।।